वन नेशन-वन इलेक्शन: क्या 2029 में पूरा देश एक साथ वोटिंग करेगा? जानिए इस बड़े कदम से जुड़ी अहम बातें
भारत में लोकतंत्र के इतिहास में बदलाव की एक नई लहर चल रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने वन नेशन-वन इलेक्शन के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। अगर यह बिल संसद से पास होता है, तो 2029 में देश के सभी चुनाव, लोकसभा, विधानसभा, और स्थानीय निकाय, एक साथ कराए जा सकते हैं।
लेकिन यह प्रक्रिया जितनी सरल सुनने में लगती है, उतनी ही चुनौतीपूर्ण है। आइए, इससे जुड़ी हर अहम जानकारी को विस्तार से समझते हैं।
वन नेशन-वन इलेक्शन का विचार कब आया?
2014 में जब नरेंद्र मोदी पहली बार प्रधानमंत्री बने, तब उन्होंने वन नेशन-वन इलेक्शन की चर्चा शुरू की। उनका मानना था कि बार-बार चुनाव कराने से देश की विकास प्रक्रिया बाधित होती है और सरकारी संसाधन अनावश्यक रूप से खर्च होते हैं। 2015 में लॉ कमीशन ने भी यह सुझाव दिया कि एक साथ चुनाव कराने से करोड़ों रुपये बच सकते हैं।
2019 में मोदी सरकार ने इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए सभी राजनीतिक पार्टियों के साथ बैठक बुलाई। हालांकि, इस पर कोई ठोस सहमति नहीं बन पाई। 2023 में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया, जिसने 18,626 पन्नों की रिपोर्ट तैयार कर मार्च 2024 में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी। इसके बाद केंद्रीय कैबिनेट ने इस बिल को मंजूरी दे दी।
क्या है वन नेशन-वन इलेक्शन की सबसे बड़ी चुनौती?
वन नेशन-वन इलेक्शन को लागू करने के लिए सबसे पहले संविधान संशोधन की जरूरत होगी।
- संविधान संशोधन:
लोकसभा और विधानसभाओं का कार्यकाल अलग-अलग होने के कारण, कुछ राज्यों की विधानसभा का कार्यकाल बढ़ाना पड़ेगा और कुछ को पहले ही भंग करना होगा। इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 82ए, 172 और अन्य प्रावधानों में बदलाव करना होगा। - राज्यों की सहमति:
केंद्र सरकार को राज्यों की सहमति भी लेनी होगी। विपक्षी दलों के नेतृत्व वाले राज्य इसमें रुकावट डाल सकते हैं। - संसद में बहुमत:
संविधान संशोधन बिल पास करने के लिए संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत चाहिए। यह संख्या लोकसभा में 362 और राज्यसभा में 154 है। हालांकि, मौजूदा स्थिति में यह आंकड़ा जुटाना केंद्र सरकार के लिए आसान नहीं होगा।
वन नेशन-वन इलेक्शन: क्या कहती हैं राजनीतिक पार्टियां?
इस प्रस्ताव पर देश की 62 राजनीतिक पार्टियों से विचार मांगे गए थे। इनमें से 47 पार्टियों ने जवाब दिया। भाजपा, बीजेडी, शिवसेना, जेडीयू और लोजपा जैसी 32 पार्टियों ने इसका समर्थन किया। वहीं कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, सीपीएम और बसपा जैसी 15 पार्टियां इसका विरोध कर रही हैं।
क्या पहले कभी एक साथ चुनाव हुए हैं?
आजादी के बाद देश में 1951-52, 1957, 1962 और 1967 में एक साथ चुनाव हुए थे। लेकिन 1969 में बिहार विधानसभा भंग होने और 1970 में लोकसभा चुनाव समय से पहले कराने की वजह से यह क्रम टूट गया।
क्या एक साथ चुनाव कराना संभव है?
देश के सभी चुनाव एक साथ कराना एक बड़ा प्रशासनिक और लॉजिस्टिक चैलेंज है। हालांकि, कोविंद कमेटी ने इसे लेकर कई सिफारिशें दी हैं:
- यदि कोई विधानसभा भंग होती है, तो शेष कार्यकाल के लिए ही चुनाव कराया जाएगा।
- चुनाव प्रक्रिया को व्यवस्थित करने के लिए दो चरणों में चुनाव कराए जा सकते हैं।
दुनिया में कहां होती है ऐसी व्यवस्था?
कोविंद कमेटी ने स्वीडन, जापान, इंडोनेशिया, जर्मनी, बेल्जियम और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों का अध्ययन किया है। इन देशों में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाते हैं।
वन नेशन-वन इलेक्शन: फायदे और नुकसान
फायदे:
- चुनावी खर्च में भारी कमी।
- प्रशासनिक कार्य में स्थिरता।
- सरकार का ध्यान विकास कार्यों पर केंद्रित रहेगा।
चुनौतियां:
- संवैधानिक संशोधन में बाधाएं।
- सभी पार्टियों की सहमति बनाना मुश्किल।
- इतने बड़े चुनाव की लॉजिस्टिक जटिलताएं।
निष्कर्ष
वन नेशन-वन इलेक्शन देश के चुनावी इतिहास में एक बड़ा बदलाव ला सकता है। हालांकि, इसे लागू करना आसान नहीं होगा।
संसद में बहस और राज्यों की सहमति इस प्रक्रिया को लंबा खींच सकती है। अब देखना होगा कि यह बिल शीतकालीन सत्र में पेश होने के बाद कितना आगे बढ़ पाता है।